इजराइल में मैने क्या देखा, काश भारत इससे कुछ सीख सकें

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हमारी सरकारें इससे कुछ सीख सकें

आज हिब्रू में अनेक शोध प्रबंध लिखे जा चुके हैं। इतने छोटे से राष्ट्र में इंजीनियरिंग और मेडिकल से लेकर सारी उच्च शिक्षा हिब्रू में होती है। इजराइल को समझने के लिए बाहर के छात्र हिब्रू पढने लगे हैं..! ये हैं इजराइल..!

प्रशांत पोल/सोशल मीडिया से/जुलाई 5, 2017, photo by businessinsider
मैं तीन बार इजराइल जा चुका हूँ। तीनों बार अलग-अलग रास्तों से। पहली बार लंदन से गया था। दूसरी बार पेरिस से। लेकिन तीसरी बार मुझे जाने का अवसर मिला, पड़ोसी देश जॉर्डन से। राजधानी अम्मान से, रॉयल जॉर्डन एयरलाइन्स के छोटे से एयरक्राफ्ट से तेल अवीव की दूरी मात्र 40 मिनट की हैं। मुझे खिड़की की सीट मिली और हवाई जहाज छोटा होने से, तुलना में काफी नीचे से उड़ रहा था। आसमान साफ़ था। मैं नीचे देख रहा था। मटमैले, कत्थे और भूरे रंग का अथाह फैला रेगिस्तान दिख रहा था। पायलट ने घोषणा की, कि ‘थोड़ी ही देर में हम नीचे उतरने लगेंगे’। और अचानक नीचे का दृश्य बदलने लगा। मटमैले, कत्थे और भूरे रंग का स्थान हरे रंग ने लिया। अपनी अनेक छटाओं को समेटा हरा रंग..!
 
रेगिस्तान में खेती: रेगिस्तान तो वही था। मिट्टी भी वही थी। लेकिन जॉर्डन की सीमा का इजराइल को स्पर्श होते ही मिटटी ने रंग बदलना प्रारंभ किया। यह कमाल इजरायल का है। उनकी मेहनत का है। उनके जज्बे का है। रेगिस्तान में खेती करने वाला इजराइल आज दुनिया को उन्नत कृषि तकनिकी निर्यात कर रहा है। रोज टनों से फूल और सब्जियां यूरोप को भेज रहा है। आज सारी दुनिया जिसे अपना रही है, वह ‘ड्रिप इरीगेशन सिस्टम’, इजराइल की ही देन हैं।
 
इजराइल स्वाभिमान का प्रतीक: मात्र 80 लाख आबादी का यह देश। तीन से चार घंटे में देश के एक कोने से दूसरे कोने की यात्रा संपन्न होती है। मात्र दो प्रतिशत पानी के भण्डार वाला देश। प्राकृतिक संसाधन नहीं के बराबर। ईश्वर ने भी थोड़ा अन्याय ही किया है। आजू बाजू के अरब देशों में तेल निकला है, लेकिन इजराइल में वह भी नहीं..!
 
इजराइल यह राजनीतिक जीवंतता और राजनीतिक समझ की पराकाष्ठा का देश है। इस छोटे से देश में कुल 12 दल है। आज तक कोई भी दल अपने बलबूते सरकार नहीं बना पाया है। पर एक बात है– देश की सुरक्षा, देश का सम्मान, देश का स्वाभिमान और देशहित… इन बातों पर पूर्ण एका है। इन मुद्दों पर कोई भी दल न समझौता करता है, और न ही सरकार गिराने की धमकी देता है। इजराइल का अपना ‘नॅशनल अजेंडा’, जिसका सम्मान सभी दल करते हैं।
 
हिब्रू भाषा ही राष्ट्रीय भाषा : 14 मई, 1948 को जब इजराइल बना, तब दुनिया के सभी देशों से यहूदी (ज्यू) वहां आये थे। अपने भारत से भी ‘बेने इजराइल’ समुदाय के हजारों लोग वहां स्थानांतरित हुए थे। अनेक देशों से आने वाले लोगों की बोली भाषाएं भी अलग-अलग थी। अब प्रश्न उठा कि देश की भाषा क्या होना चाहिए..? उनकी अपनी हिब्रू भाषा तो पिछले दो हजार वर्षों से मृतवत पड़ी थी। बहुत कम लोग हिब्रू जानते थे। इस भाषा में साहित्य बहुत कम था। नया तो था ही नहीं। अतः किसी ने सुझाव दिया कि अंग्रेजी को देश की संपर्क भाषा बनाई जाए। पर स्वाभिमानी ज्यू इसे कैसे बर्दाश्त करते..? उन्होंने कहा, ‘हमारी अपनी हिब्रू भाषा ही इस देश के बोलचाल की राष्ट्रीय भाषा बनेगी।’
 
निर्णय तो लिया। लेकिन व्यवहारिक कठिनाइयां सामने थी। बहुत कम लोग हिब्रू जानते थे। इसलिए इजराइल सरकार ने मात्र दो महीने में हिब्रू सिखाने का पाठ्यक्रम बनाया। और फिर शुरू हुआ, दुनिया का एक बड़ा भाषाई अभियान..! पाँच वर्ष का। इस अभियान के अंतर्गत पूरे इजराइल में जो भी व्यक्ति हिब्रू जानती था, वह दिन में 11 बजे से 1 बजे तक अपने निकट के शाला में जाकर हिब्रू पढ़ाता था। अब इससे बच्चे तो पाँच वर्षों में हिब्रू सीख जायेंगे। बड़ों का क्या..?
 
इसका उत्तर भी था। शाला में पढने वाले बच्चे प्रतिदिन शाम 7 से 8 बजे तक अपने माता-पिता और आस-पड़ोस के बुजुर्गों को हिब्रू पढ़ाते थे। अब बच्चों ने पढ़ाने में गलती की तो..? जो सहज स्वाभाविक भी था। इसका उत्तर भी उनके पास था। अगस्त 1948 से मई 1953 तक प्रतिदिन हिब्रू का मानक (स्टैण्डर्ड) पाठ, इजराइल के रेडियो से प्रसारित होता था। अर्थात जहां बच्चे गलती करेंगे, वहां बुजुर्ग रेडियो के माध्यम से ठीक से समझ सकेंगे।
 
और मात्र पाँच वर्षों में, सन 1953 में, इस अभियान के बंद होने के समय, सारा इजराइल हिब्रू के मामले में शत प्रतिशत साक्षर हो चुका था..!
 
आज हिब्रू में अनेक शोध प्रबंध लिखे जा चुके हैं। इतने छोटे से राष्ट्र में इंजीनियरिंग और मेडिकल से लेकर सारी उच्च शिक्षा हिब्रू में होती है। इजराइल को समझने के लिए बाहर के छात्र हिब्रू पढने लगे हैं..! ये हैं इजराइल..! जीवटता, जिजीविषा और स्वाभिमान का जिवंत प्रतीक..! हम सब के लिए यह निश्चित ही ऐतिहासिक घटना है..!
– प्रशांत पोल

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