यूरोप में कोई मर्द किसी औरत को नहीं ताकता

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स्पेन से लेकर पुर्तगाल, आस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया और स्विट्ज़रलैंड तक के बीते करीब दो महीनों के अपने सफर में मर्दों और औरतों को बराबरी के रोल में ही देखा है। और हां, स्कर्ट की लंबाई चाहे कितनी छोटी हो, टी-शर्ट चाहे जितनी चुस्त, कोई मर्द किसी औरत को नहीं ताकता!
Alka Kaushik in Vienna, Austria
आप औरत हैं और अकेली हैं तो भी यूरोप आपको अपनी ड्रिंक और कंडोम खरीदने की आजादी देता है, यूरोप आपको ‘जज’ नहीं करता, दिन और रात के किसी भी पहर मन की उड़ान के मुताबिक ज्यादातर देशों की अनगिनत सड़कों पर बेपरवाह होकर गुजर सकती हैं …
स्पेन से लेकर पुर्तगाल, आस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया और स्विट्ज़रलैंड तक के बीते करीब दो महीनों के अपने सफर में मर्दों और औरतों को बराबरी के रोल में ही देखा है। और हां, स्कर्ट की लंबाई चाहे कितनी छोटी हो, टी-शर्ट चाहे जितनी चुस्त, कोई मर्द किसी औरत को नहीं ताकता!
इंसान बहुत ऊंचे पायदान पर है इन डेवलप्ड समाजों में, इसीलिए उसकी हर जरूरत, हर सुख-सुविधा को भांपकर उसके समाधान मौजूद हैं। इस मायने में ये समाज मुझे ‘saturated’ लगते हैं। ​ज्युरिख़ की सड़कों को देखकर तो बारहा एक ही सवाल मैं खुद से पूछ रही थी कि ‘अब क्या बाकी रहा है यहां की सरकारों के पास करने के लिए’ या ‘कौन-सी ख्वाहिश है जो अधूरी होगी यहां के बाशिन्दों की’? और बार-बार बस एक ही गाना याद आता रहा — ‘हरेक चीज़ है अपनी जगह ठिकाने से, कई दिनों से शिकायत नहीं ज़माने से ….’
तो क्या वाकई ये समाज हर आफत से परे हैं? या अब भी कुछ बाकी रहा है हासिल करने को?
वियना में दैन्यूब किनारे लगातार दो रातें Brigitta Maria Csitkovics (she is a Hungarian and works in hospitality sector in Vienna) के साथ आस्ट्रिया की लोकल बियर Ottakringer के जाम गटकते हुए कैसे गुजर गईं, मालूम ही नहीं पड़ा। हर रात 1-2 बजे ही लौटना होता था, वो भी इसलिए कि आंखों में जमा नींद तंग करने लगती थी, हालांकि दैन्यूब नहर के किनारे वियना की मस्ती अभी परवान चढ़ी होती थी।
मुझसे रहा नहीं गया तो पूछ ही लिया —”तुम्हारी दुनिया में तो हरेक के पास सुख और सुकून है, आज़ादी है, बिंदासपन है, मस्ती है … फिर वो क्या है जिसे हर घड़ी, दिन और रात सिगरटों के धुंओं और जाम में उड़ाने की बेताबी है .. वो कौन-सी तड़प है जो तुम्हारा चैन लूटती है …?’
ब्रिजिता के जवाब ने मुझे अवाक कर दिया— ‘we have all the exotic spices from around the world, but we are lacking in one basic spice- and that is salt..for we have forgotten where it is…” और नमक ही तो असल स्वाद है, उसी से तो जिंदगी नमकीन है .. वही नहीं है हमारे पास!
Pics credit: Kavyanjali Kaushik   #EuropeYatra

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