बीजिंग: पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से गुजरने वाले चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे में करीब 50 अरब डॉलर के निवेश के कारण कश्मीर मुद्दे को हल करने में भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने में अब चीन के ‘निहित स्वार्थ’ हैं. सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ में प्रकाशित एक लेख में यह संकेत दिया गया है कि क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाने में चीन के अप्रत्यक्ष हित हैं.

लेख में दावा किया गया है कि रोहिंग्या शरणार्थी मुद्दे पर चीन ने म्यांमार और बांग्लादेश के बीच मध्यस्थता की. इसमें कहा गया है, ‘चीन ने अन्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप ना करने के सिद्धांत का हमेशा पालन किया है, लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि बीजिंग विदेशों में अपने निवेश की रक्षा में चीनी उद्यमों की मांगों पर ध्यान नहीं देगा.’ इसमें कहा गया है, ‘वन बेल्ट, वन रोड’ पर आने वाले देशों में चीन ने भारी निवेश किया है, इसलिए अब भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद समेत क्षेत्रीय विवाद हल करने में मदद के लिए चीन के निहित स्वार्थ हैं.’

लेख में कहा गया है कि रोहिंग्या मुद्दे को लेकर म्यांमार और बांग्लादेश के बीच हाल ही में चीन की मध्यस्थता क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने में अपनी सीमाओं से बाहर संघर्षों को हल करने में चीन की बढ़ती क्षमता को दर्शाता है. इसमें कहा गया है, ‘चीन के पास मध्यस्थता के जरिए विवाद सुलझाने की क्षमता है, देश को इस क्षेत्र में भारत समेत अन्य बड़ी शक्तियों से निपटने में बहुत विवेकशील होने की जरूरत है. असल में, कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करना शायद चीन के लिए विदेशों में अपने हितों की रक्षा करने के लिए क्षेत्रीय मामलों से निपटने में सामने आ रही सबसे मुश्किल चुनौती होगी.’ संभवत: यह पहली बार है कि चीन की आधिकारिक मीडिया ने कश्मीर मुद्दे को हल करने में मध्यस्थता की भूमिका निभाने में बीजिंग के हितों पर बात की है.

चीन, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में निवेश बढ़ा रहा है ऐसे में उसका आधिकारिक रुख यह है कि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दा सुलझना चाहिए. चीन ने पीओके में अपने सैनिकों की मौजूदगी की रिपोर्टों को खारिज करते हुए कहा कि उसके सैनिक वहां मानवीय सहायता देने के लिए है. हालांकि विवादास्पद गिलगित और बाल्टिस्तान क्षेत्र से गुजरने वाले उसके 46 अरब डॉलर की लागत वाले चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपेक) ने विवादित इलाकों में चीन के दखल को बढ़ा दिया है.

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