…और हमने घर में जूते-चप्पल ले जाने की आदत छोड़ दी

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पत्रकारिता का सफरनामा-1

महाराष्ट्र में मैं लगभग साढ़े सात साल रहा। वहां हमने पाया कि मेहमान किसी के घर जाने पर घर के बाहर जूते या चप्पल खोल देते थे। महाराष्ट्र का यह संस्कार मुझे अच्छा लगा। धीरे-धीरे हमने भी इस आदत को अपना लिया।

Written by Roy Tapan Bharati 
फेसबुक के मेरे कुछ मित्र चाहते हैं कि मैं पत्रकारिता और जीवन का अनुभव अपने फेसबुक वॉल पर सीरिज में साझा करता रहूं ताकि तमाम वर्ग के साथी भी उसे पढ़ सकें। उनकी सलाह से मैं इत्तेफाक रखता हूं…
 
मैं आज एक छोटी-सी बात का यहां जिक्र करुंगा…पत्रकारिता की वजह से मुझे नोएडा-दिल्ली के अलावा रांची, #नागपुर-मुंबई, लखनऊ, वाराणसी जैसे शहरों में मीडिया की नौकरी करने का अवसर मिला। रिपोर्टिंग के लिए भी अनगिनत राज्यों का दौरा किया…तीस साल बाद जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो मुझे एहसास होता है कि हमने इन शहरों या गांवों में जाकर कुछ न कुछ नई बातें सीखीं।
 
सन 1988 में मेरा चयन महाराष्ट्र के नए दैनिक “लोकमत समाचार” के लिए हुआ था। झारखंड से महाराष्ट्र जाकर मैंने पत्रकारिता के लिए बहुत मेहनत की। जल्द ही मुझे सीनियर सब एडिटर से चीफ रिपोर्टर बना दिया गया। कामठी कोयला खदान हादसे, मेवाड़ की बाढ़ हो या लातूर का भूकंप हो या अयोध्या का विवादित बाबरी ढांचा गिराने की ऐतिहासिक घटना हो मैंने हनुमान जी की तरह दौड़कर रिपोर्टिंग की। तब हम पत्रकार हवाई जहाज से कम बस-रेल या टैक्सी से अधिक चलते थे।
 
महाराष्ट्र में मैं लगभग साढ़े सात साल रहा। वहां हमने पाया कि मेहमान किसी के घर जाने पर घर के बाहर जूते या चप्पल खोल देते थे। महाराष्ट्र का यह संस्कार मुझे अच्छा लगा। धीरे-धीरे हमने भी इस आदत को अपना लिया। आज भी हम दिल्ली या पंजाब या कहीं जाने पर चप्पल या जूते घर के बाहर ही उतार देते हैं। इससे सबसे बड़ा #फायदा मुझे यह दिखा कि बाहर के किटाणु-जीवाणु और गंदी धूल घर के भीतर प्रवेश नहीं करती और हम इससे तमाम तरह की बीमारियों से बच जाते हैं…वसुंधरा के घर में अगर कोई मेहमान आते हैं तो हम उनसे जूते-चप्पल घर के बाहर ही रखने का आग्रह करते हैं…जूते-चप्पल के लिए हमने एक छोटी सी #आलमारी भी बना रखी है, जहां हम बाहर से आई धूल वाली चप्पल-जूतों को #कैद कर देते हैं…घर के अंदर चलने केे लिए हम सब अलग चप्पल-सैंडल रखते हैं।…जाहिर है इसका फायदा हमारे परिवार और घर आए मेहमानों को भी होता ही होगा।
 
इसी तरह हमारे परिवार ने दूसरे राज्यों के #खान-पीन को भी अपनाया। महाराष्ट्र का स्वादिष्ट पोहा खाने की आदत मुझे नागपुर से लगी। अब भी यह आदत में शुमार है। महाराषट्र और मप्र में दही का श्रीखंड पीने में जो आनंद आता है उसका मुकाबला फैैंटा-कोला नहीं कर सकता। (शेष बातें अगली किश्त में)
Comments on Facebook:
Avanish Bhatt: जूते/चप्पल बाहर निकालना बहुत ही अच्छा है, मैंने भी यह मुम्बई और जबलपुर के अपने रिश्तेदारों से सीखा और पिछले साल जब ट्रांसफर होकर झांसी आया तो अपने घर पर भी यही प्रक्रिया प्रारंभ कर दिया।
इससे सफाई maintain करने में काफी सहायता मिलती है।
 
Gautam Singh: यह एक बहुत ही अच्छी आदत है । मेरा भी साल में कम से क्म दो बार महाराष्ट्र जाना होता है , वहाँ पर यह बात देखने को मिला । मेरी पत्नी इस मामले में टाईट हैं । मेरे घर बहुत सारी छात्रायें उनसे संगीत सीखने आती है । जिस दिन उनका सिखाने का होता है , उस दिन घर के बाहर जुतियों एवं चप्पलों का ढ़ेर लग जाता है । जहाँ तक महाराष्ट्र के पोहा का बात है तो उसका क्या कहना । मेरा नासिक के त्रम्बकेश्वर महादेव के पुजा का अवसर तीन बार मिला । नासिक में उस समय मेरे साढू श्री नवल किशोर महाराज सी० आई० एस० एफ० में डिप्टी कमानडेंट थे उनका हर जगह पकड़ रहने के कारण हमलोग पुरोहित के यहाँ जाते थे तो वो जो अपने यजमान को पोहा खिलाते थे , उसके स्वाद का क्या कहना । तब से हमने अपने घर के नास्ता में सप्ताह में एक दिन पोहा जरूर बनवाता हूँ , और बड़े चाव से खाता हूँ । आपका बहुत बहुत आभार अपने पिछले दिनों का दर्शन करवाने के लिये, पुनः आभार ॥
 
Amit Sharma: बात सही है सफाई की ये अच्छी आदत है इसी तरह केरल मे किसी के घर पर जाईये वो आपको पानी जो पियेगे उसमे आयुर्वेदीक दवा मिला के पिलाते है ताकी आपको स्वच्छ जल प्राप्त हो
 
Pravakar Roy: बंगाल में यह प्रथा या आदत कहिये शुरू से है। जब हमारे यहाँ कोई मेहमान या अन्य ब्यक्ति बाहर से आते थे ,तो उनको आरम्भ में बुरा लगता था। मगर आज वो लोग भी इस आदत का अनुसरण करने लगे।
 
Dilipkumar Pankaj: आपने अपने पिछले जीवन के दर्शन बड़ी ही रोचक शब्दों में कराया | युवावस्था की कड़ी मेहनत से लेकर कम सुविधा में तराशा हुआ काम कैसे किया आपने यह जानकारी काफी प्रेरक लगी |
 
Anjana Sharma: बहुत अच्छी आदत है,,, अनुकरणीय।
 
Geeta Bhatt: बहुत अच्छा लगा। ये नियम मेरे अपने इलाहाबादके घर मे 30 वर्ष पहले से ही लागू किए है न ही हम लोग किसी के घर के अंदर जूते-चप्पल पहन जाते है ।और न ही कोई व्यक्ति पहन कर मेरे घर के अंदर आता ही है ।किसी को कह नही पाते थे तो बैठक कमरे मे कालीन बिछा दीये ।लोग खुद ही पहन कर नही आते। हां यदि कोई नजर अंदाज कर के आ ही जाये तो कुछ नही बोलते। जाने के बाद सफाई अभियान।
 
Poornima Patil: 😀 तपन जी अनुभवों को साझा करने का फैसला बढ़िया है। आपने रोचक ढंग महाराष्ट्र की जीवनशैली और खानपान का किस्सा बताया है। स्वच्छता की टिप्स उपयोगी है। वाह! अगली कड़ी का इंतजार है..
हां-तपनजी, आप नागपुर के लोकमत समाचार में हमारे पुराने साथी और वरिष्ठ लोकप्रिय पत्रकार रहे हैं। आप बेबाक रिपोर्टर भी रहे हैं। बहुत अच्छा लगा फेसबुक के माध्यम से अब पुनः आपको पढ़ने का अवसर प्राप्त हो रहा है।
 
Sangita Roy: बहुत अच्छी आदत है।हमारे घर में भी यह चलन है।हूबहू आपके घर की तरह ही ।घर के अंदर अलग और बाहर अलग ।बिल्कुल सही बात है बाहरी किटाणुओं के प्रवेश को कम किया जा सकता है और बाहरी गंदगी भी कम आती है। बंगाली मारवाड़ी एवं गुजराती समाज में भी इसका चलन है।
 
Rekha Rai: हमारे चेन्नई में भी जूते चप्पल घर के बाहर रखने की प्रथा है।हम लोगो की तो एकदम आदत सी बन गयी है।घर मे बच्चे से बूढ़े तक चप्पल बाहर ही निकालते है। मेरी तो ऐसी आदत हो गयी है कि हम up अपने मायके या बहनों के यहाँ जाते है तो यहां की आदत के अनुसार चप्पल बाहर ही निकालते है।
 
Deorath Kumar: हमारे घर मे यही परंपरा है
 
Birendra Tiwari: बुरी आदतों को छोड़ना ऐक अच्छे इंसान होने की सबुत है।
 
Sarita Sharma: मेरे घर में भी बाहर पहनने के लिए अलग और घर के लिए अलग है। मैंने भी बाहरी फुटवेयर रखने के लिए एक आलमारी बना रखी है। यह आदत स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बहुत फायदेमंद है। इस पर हरेक को अमल करना चाहिए।
 
Mini Singh: मेरे घर में भी सालोंं से यही परम्परा है और हमने भी यह सब गुजरात में आकर सीखा है।
Sanjoy Bhatt: ज्ञान वर्धक दिशा-निर्देश दिए, आपका शुक्रिया
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाऐ सर
 
Ku Bhatt Sharad: Health ,Hygiene ,Sanitation की द्र्श्ठि से ये बहुत ही बेहतर तरीका है ,जिसने परम्परा का रूप पाया । जहाँ तक मुझे याद है ,ऊ प्र मे भी चप्पल बाहर ही उतारने की परम्परा रही है ।पर अब कम या नहीँ दिखती। नेपाल ,भूटान ,आसाम ,महाराष्ट्र ,बेँगाल ,द्क्छिड ,मे ,तथा धार्मिक इस्थानौ मे ये आज भी जीवित है । वैसे इसका Modification कर उपयोग करना लाभ प्रद तथा acceptable होगा ।बाहर से आने पर जूते चप्पल ,एक नियत स्थान पर उतार कर दूसरे घर की चप्पल या सन्ड्ल पेहन लें ।याद रखे ये चप्पल सन्ड्ल भी अच्छे होने चाहिये ।साफ सुथरे के अलावा गुणवत्ता वाले ।
 
Ambrish Sharma: ब्राण्डेड फुटवेअर महंगे मिलते है
 
sangeeta Tiwari: अच्छी आदत है,,,लेकिन हम इसका अनुकरण नही कर पाते।
 
 
 

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