अर्मेनिया-अजरबैजान में जंग तेज, रूस-तुर्की में भी बढ़ा तनाव

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रूस अर्मेनिया का समर्थन कर रहा वहीं नाटो देश तुर्की व इस्राइल अजरबैजान का साथ दे रहा

नई दिल्ली, 30 सितंबर 2020: आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच भीषण जंग जारी है। इस जंग के दूसरे दिन 80 से अधिक लोग मारे गए। ये जंग विवादित क्षेत्र नागोनरे और काराबाख पर कब्‍जे को लेकर हो रही है। 2016 के बाद दोनों देशों के बीच हुई ये सबसे भीषण लड़ाई है। 4 दिन से जारी इस युद्ध में सैकड़ों लोगों के घायल होने की खबरें हैं जबकि दोनों ही देश एक-दूसरे पर टैंकों, तोपों और हेलीकॉप्टर से घातक हमले करने का आरोप लगा रहे हैं। इस बीच रूस ने जहां अर्मेनिया का समर्थन किया है और नाटो देश तुर्की व इस्राइल ने अजरबैजान का साथ देने का संकल्प लिया है। इससे यह जंग अब विस्तार पकड़ सकती है।

रूस और तुर्की के बीच जहां लीबिया और सीरिया के गृहयुद्ध में तलवारें खिंची हुई हैं वहीं इस जंग से दोनों के बीच रिश्ते और खराब होने की आशंका

दूसरी तरफ, जैसे-जैसे यह जंग तेज हो रही है, वैसे-वैसे रूस और नाटो देश के तुर्की के इसमें कूदने का खतरा मंडराने लगा है। अजरबैजान के रक्षा मंत्रालय ने दावा किया कि अर्मेनियाई बलों ने टारटार शहर पर गोलाबारी शुरू कर दी है। वहीं, अर्मेनियाई अधिकारियों ने कहा कि लड़ाई रातभर जारी रही और अजरबैजान ने सुबह के समय घातक हमले शुरू कर दिए। दोनों ने एक दूसरे के कई सैनिकों को मारने का दावा किया है। अर्मेनिया ने अजरबैजान के चार हेलीकॉप्टरों को मार गिराने का दावा भी किया। संकट को देखते हुए अजरबैजान में कई जगह मार्शल लॉ लगाया गया है तथा कुछ प्रमुख शहरों में कर्फ्यू के आदेश भी दिए गए हैं।
रूस और तुर्की के बीच जहां लीबिया और सीरिया के गृहयुद्ध में तलवारें खिंची हुई हैं वहीं इस जंग से दोनों के बीच रिश्ते और खराब होने की आशंका है। हालांकि फिलहाल दोनों देशों में व्यापारिक रिश्ते कायम हैं। जबकि तुर्की में बने हमलावर ड्रोन विमान नागोरनो-काराबाख में आर्मीनियाई टैंकों का शिकार कर रहे हैं। रूस ने इसे लेकर सख्त कदम उठाने की चेतावनी दी है। 

इस विवाद के केंद्र में नागोर्नो-काराबाख का पहाड़ी इलाक़ा है जिसे अज़रबैजान अपना कहता है, हालांकि 1994 में ख़त्म हुई लड़ाई के बाद से इस इलाक़े पर आर्मीनिया का कब्ज़ा है

आर्मेनिया और अदशकों पहले से जारी इस विवाद को लेकर एक बार फिर से छिड़ी लड़ाई में सोमवार को दर्जनों लोगों के मारे जाने की ख़बर है। इस विवाद के केंद्र में नागोर्नो-काराबाख का पहाड़ी इलाक़ा है जिसे अज़रबैजान अपना कहता है, हालांकि 1994 में ख़त्म हुई लड़ाई के बाद से इस इलाक़े पर आर्मीनिया का कब्ज़ा है। 
1980 के दशक से अंत से 1990 के दशक तक चले युद्ध के दौरान 30 हज़ार से अधिक लोगों को मार डाल गया और 10 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए थे.जरबैजान के बीच बीते दिनों से भीषण जंग जारी है। इस जंग के दूसरे दिन करीब 2आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच बीते दिनों से भीषण जंग जारी है। इस विवाद को लेकर अब चिंता जताई जा रही है कि इसमें तुर्की, रूस और ईरान भी कूद सकते हैं। इस इलाक़े से गैस और कच्चे तेल की पाइपलाइनें गुज़रती है इस कारण इस इलाक़े के स्थायित्व को लेकर जानकार चिंता जता रहे हैं।
क्यों लड़ रहे हैं आर्मीनिया और अज़रबैजान?
पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा रह चुके आर्मीनिया और अज़रबैजान नागोर्नो-काराबाख के इलाक़े को लेकर 1980 के दशक में और 1990 के दशक के शुरूआती दौर में संघर्ष कर चुके हैं। दोनों ने युद्धविराम की घोषणा भी की लेकिन सही मायनों में शांति समझौते पर दोनों कभी सहमत नहीं हो पाए। दक्षिणपूर्वी यूरोप में पड़ने वाली कॉकेशस के इलाक़े की पहाड़ियां रणनीतिक तौर पर बेहद अहम मानी जाती हैं. सदियों से इलाक़े की मुसलमान और ईसाई ताकतें इन पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहती रही हैं।
1920 के दशक में जब सोवियत संघ बना तो अभी के ये दोनों देश – आर्मीनिया और अज़रबैज़ान – उसका हिस्सा बन गए। ये सोवियत गणतंत्र कहलाते थे। नागोर्नो-काराबाख की अधिकतर आबादी आर्मीनियाई है लेकिन सोवियत अधिकारियों ने उसे अज़रबैजान के हाथों सौंप दिया। इसके बाद दशकों तक नागोर्नो-काराबाख के लोगों ने कई बार ये इलाक़ा आर्मीनिया को सौंपने की अपील की। लेकिन असल विवाद 1980 के दशक में शुरू हुआ जब सोवियत संघ का विघटन शुरू हुआ और नागोर्नो-काराबाख की संसद ने आधिकारिक तौर पर खुद को आर्मीनिया का हिस्सा बनाने के लिए वोट किया।

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