आखिर, अकबर अपनी राजधानी फतेहपुर सीकरी से लाहौर क्यों ले गए?

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बुलंद दरवाजा एशिया का सबसे ऊंचा दरवाजा है। दरवाजे तक 52 सीढ़ियां चढ़कर पहुंचते हैं। दरवाजे पर पुराने जमाने की किवाड़ आज भी शोभा दे रही है। सम्राट अकबर को कलाप्रेमी कहा जाता है और एक सफल राजा भी जिसके प्रमाण उसकी ओर से बनाया गया यह भव्य किला है। 
प्रियंका राय/पटना
किसी ने कहा है। बचपन में यात्रा करना शिक्षा का एक भाग है एवं बड़े होने पर यह अनुभव का एक भाग है। कुछ लोगों के लिये लिये महल एवं किलों में जाना पुरातन एवं खंडहरों में जाना केवल समय की बरबादी है। वह यह भी कहते हैं कि व्यक्ति इनके बारे में पढ़ सकता है। किन्तु वह भूल जाते हैं कि सत्य को निकट से देखने, स्पर्श करने एवं महसूस करने से एक अलग तरह की सन्तुष्टि एवं रोमांच की अनुभूति होती है।
 
एक हफ्ते की हमारी यात्रा में आसपास के पर्यटन स्थल शामिल थे जिनमें वृन्दावन से सटे फतेहपुर सीकरी और आगरा भी थे। हमने आज पुनः इनोवा गाड़ी किराए पर ली और सुबह ताजातरीन होकर दिन भर की यात्रा के लिये रवाना हुए।फतेहपुर सीकरी के पास पार्किंग जोन में हमें उतार दिया गया और आगे जाने के लिये हमने लोकल मिनी बस के टिकट लिये जो फतेहपुर सीकरी आने-जाने के लिए सस्ता और सुलभ साधन है। कुछ मिनटों में बस मंजिल तक आकर रुकी। यहाँ 3-4 घंटे घूमने का समय मिलता है। वापस बस आपको पार्किंग जोन तक छोड़ देती है। किले मे टिकट लेकर अंदर प्रवेश करना होता है। यहाँ विदेशियों के लिए प्रवेश शुल्क- 485 रुपये, भारतीयों के लिए प्रवेश शुल्क- 50 रुपये और शुक्रवार को प्रवेश मुफ़्त है।
फतेहपुर सीकरी किले में 175 फुट ऊंचे बुलंद दरवाजे से ही प्रवेश कर सकते। कहा जाता है कि बुलंद दरवाजा एशिया का सबसे ऊंचा दरवाजा है। दरवाजे तक 52 सीढ़ियां चढ़कर पहुंचते हैं। दरवाजे पर पुराने जमाने की किवाड़ आज भी शोभा दे रही है। यहाँ आकर ऐतिहासिक स्मारकों से इतिहास का जीवंत ज्ञान प्राप्त हो रहा था। सम्राट अकबर को कलाप्रेमी कहा जाता है और एक सफल राजा भी जिसके प्रमाण उसके द्वारा बनाया गया यह भव्य किला है। मुगल सम्राट अकबर द्वारा 16वीं सदी के दौरान निर्मित यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल में से है। इस किले में वास्तुशिल्प की  इमारतों को देखकर अच्छी अनुभूति हो रही थी। यहाँ विदेशी सैलानियों की भरमार थी। उनकी भारतीय परिवेश में पूरी रुचि दिख रही थी।
फतेहपुर सीकरी को अकबर के सपनों का नगर कहा जाता है क्योंकि, इसे उन्होंने पूरी लगन से बनवाया था। ​इसकी योजना को तैयार करने में ही उन्हें 15 वर्ष लग गए। फतेहपुर सीकरी के निर्माण से पहले मुगलों की राजधानी आगरा थी लेकिन इसके बाद अकबर ने राजधानी को नए शहर में स्थानांतरित कर लिया। पहले इसका नाम सीकरी था, लेकिन गुजरात पर विजय पाकर लौटते समय उसने इसका नाम फतेहपुर यानी विजय नगरी रख दिया। जिसे आज हम फतेहपुर सीकरी के नाम से जानते हैं। लेकिन इस क्षेत्र में पानी की किल्लत और कुछ अन्य राजनीतिक कारणों के चलते अकबर यहां लंबे समय तक नहीं रह पाए और 1585 में इसे छोड़कर लाहौर को राजधानी बना लिया।
 
दीवान-ए-खास: फतेहपुर सीकरी में ही अकबर ने नवरत्न नियुक्त किए थे। वे अक्सर दीवान-ए—खास में नवरत्नों से मंत्रणा करते थे। बाहर से एक मंजिला दिखने वाली ये ​इमारत अंदर से दो मंजिला है।
दीवान-ए-आम: यहां अकबर जनता दरबार लगाते थे। उनकी फरियाद और शिकायतों का समाधान यहीं बैठकर करते थे।
ख्वाब महल: यहां वे शयन करते थे। इसी महल में तानसेन और बैजूबावरा का संगीत सुना करते थे।
पंचमहल: पांचमंजिला बनी इस इमारत का लुत्फ वे शाम को उठाते थे।यह इमारत 176 खंभों पर टिकी है। प्रत्येक खंभे पर अलग अलग कलाकृति देखने को मिलती है।
ये सब पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र बिंदु है।

सबसे रोचक लगा जोधाबाई का महल व इसकी रसोई जहाँ अकबर की हिंदू रानियां रहती थीं। इसमें हिंदुओं और मुस्लिमों की शिल्पकला का सुंदर संयोजन देखने को मिलता है

शेख सलीम चिश्ती की दरगाह पर समयाभाव की वजह से हम जा नहीं सके। मुझे सबसे रोचक लगा जोधाबाई का महल और इसकी रसोई। इस महल में अकबर की हिंदू रानियां रहती थीं। इसमें हिंदुओं और मुस्लिमों की शिल्पकला का सुंदर संयोजन देखने को मिलता है। यहां दीवारों पर कृष्ण की धूमिल तस्वीर हमें गाइड ने दिखाई। इस वक़्त यहाँ धूप थी तो माता-पिता जी थोड़ी दूर चलकर एक जगह विश्राम करने को रुक गए और आगे हम सब पूरे किले की रौनक को निहारने चल पड़े थे।
कुछ पल बिताकर हमसब आगरे की ओर चल पड़े। रास्ते में भरतपुर का जिक्र हुआ, हमारे ड्राइवर ने कहा :-” पक्षी-परिन्दों की दुनिया से रू-ब-रू होने का जिनका मन करता है, तो यहाँ से भरतपुर जाना भी आसान है।” पर हमने समय को ध्यान में रखते हुए अभी के लिए स्थगित कर दिया।
 
अब हम आगरे के सबसे मशहूर स्थल ताजमहल पहुंच चुके थे। यहाँ पहले हमने कुछ जलपान किया। यहाँ की पकौड़ियाँ लज़ीज़ थी और पानीपुरी के क्या कहने। थोड़ी पेट पूजा होने पर ऊर्जा बरकरार रहती है आखिर दुनिया के अजूबे को देखने जा रहे थे तो पूरे एनर्जेटिक होकर जाना उचित था। इस इमारत को देखने के लिये समय भी बहुत लगता है ।
ताजमहल में अंदर जाने के लिये कई प्रवेश द्वार हैं इन्ही पर टिकट भी मिलता है। भारतीय नागरिकों के लिए टिकट की कीमत 50 रूपया है और विदेशी नागरिकों के लिए यह 750 भारतीय रुपया है। शुक्रवार को ताजमहल बन्द रहता है। और यहाँ प्रवेश के लिये नागरिक प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है। यहाँ काफी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था है।
 
हमें अपनी आँखों से ताज महल को देखना बहुत ही अच्छा लग रहा था। एक बार यूरोप के टूर से वापस आने पर अमिताभ बच्चन ने कहा था, “बहुत से विदेशी जब हमसे मिलते हैं तो कहते हैं,,, हमारे पास वो सब कुछ है जो आपके पास है इंडिया में, नहीं है तो बस दो चीजें: ताज़महल और लता मंगेशकर।” इसे देखकर यही लगा कि, वाकई ये भारत की सुंदर विरासत स्थली है। करीब से ताजमहल के दीदार करना, यह मेरे जीवन का एक सुखद क्षण था। ताज के बाहरी परिसर में प्रवेश करते ही इसके विशाल द्वार के दोनों ओर सफेद पत्थरों पर कुरानों की आयतें लिखी हुई हैं। हम सब खुशी से ताजमहल को देख रहे थे। निर्माता ने दुनिया को कला का एक महान तोहफा दिया है।
ये तो हर किसी को पता है कि, शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज़ के याद में इस स्मारक का निर्माण करवाया था तब से यह प्रेम स्मारक के रूप में विश्व विख्यात है। मुमताज महल और शाहजहां की कब्र ताजमहल के निचले हिस्से में आमने-सामने बनी हुई है। आज भी आगरा शहर देशी-विदेशी सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। पर्यटन विभाग की ओर से प्रतिवर्ष ‘ताज महोत्सव’ का आयोजन किया जाता है। खूबसूरत स्थापत्य कला में निर्मित होने की वजह यहां हर मौसम में पर्यटकों की भीड़ देखी जा सकती है। कहते हैं, ताजमहल को देखने के लिए एक दिन में 12000 सैलानी आते है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि, शरद् पूर्णिमा की चाँदनी रात में इस ताजमहल की शोभा अद्वितीय हो जाती है। यमुना के जल में इसका प्रतिबिम्ब देखने योग्य होता है। यहाँ एक गीत बरबस याद आ रही थी, “दिल कहे रुक जा रे रुक जा यहीं पे कहीं, जो बात इस जगह है कहीं पर नही”..।। यहाँ कुछ हसीन लम्हों को बिताना जिंदगी का बेहतरीन लम्हा था। हल्की बूंदाबांदी वाली बारिश और समय की मांग ने इस इमारत से अलविदा लेने को मजबूर किया और अब हम आगे आगरे का मशहूर किला देखने को निकल पड़े।
 
आगरा किले पर पहुंच कर मेरे छोटे बेटे और ससुर जी को गाड़ी में ही थोड़ा आराम करने की इक्छा हुई। और हम बाकी जन इस किले के परिसर में प्रवेश किये।
आगरे का किला भारत के किलों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब सभी मुगल सम्राट यहां रहे और यहीं से सारे देश का शासन हुआ। इस किले में ही राज्य का सबसे बडा खजाना और टकसाल थी। यहां विदेशी राजदूत, यात्री और वे सभी हस्तियां आईं जिन्होंने मध्यकालीन इतिहास के निर्माण में योगदान दिया। भारत के किसी अन्य किले को यह सम्मान प्राप्त नहीं है। यह किला एक प्राचीन दुर्ग है जो ठीक यमुना नदी के तट पर स्थित है।
“अबुल फजल ” ने लिखा है कि, इसमें बंगाल और गुजरात के सुन्दर डिजाइनों में 500 इमारतें बनवाई गईं। इनमें से अधिकतर अब नहीं हैं। कुछ को शाहजहां ने गिराकर उनकी जगह श्वेत संगमरमर के महल बनवाये। लेकिन अधिकांशतः अंग्रेजों ने गिरा दिया और उनकी सामग्री से बैरकें बनवाईं। लगभग 30 मुगल इमारतें नदी की ओर दक्षिण-पूर्वी कोने में बच गईं। इनमें दिल्ली दरवाजा, अकबर दरवाजा और बंगाली महल अकबर की प्रतिनिधि इमारतें हैं। उठने वाले पुल और घुमावदार प्रवेश के द्वारा इसे अभेद्य बना दिया गया। यहाँ बंगाली महल भी लाल पत्थर का है और आजकल दो भागों में है जिन्हें क्रम से अकबरी महल और जहांगीरी महल कहते हैं।”
1605 ई में इस किले में ही अकबर की मृत्यु हुई और यहीं जहांगीर का राज्याभिषेक हुआ।
यूनेस्को ने आगरा के किले को विश्वदाय स्मारक चिन्हित किया है।
उपरोक्त सभी बातें और इतिहास किले के प्रवेश द्वार पर एक पट्ट पर लिखी हुई थी। यह किला लम्बे समय तक मुगल राज्य की राजधानी रहा। बताते हैं कि, दिल्ली का लाल किला, आगरा का किला और फतेहपुर सीकरी वाला किला तीनों का स्थापत्य समान है।
हमने यहाँ वह जगह भी देखी जहाँ औरंगजेब ने अपने वालिद शाहजहां को कैद कर रखा था। वो कारागार के झरोखों से दूर स्तिथ ताजमहल को निहारता रहता था। बाद में उसकी मृत्यु के बाद शाहजहां की भी समाधि ताजमहल में उसके बेगम मुमताज महल की समाधि पास बनाई गई।
यहाँ से 2-3 किलोमीटर दूर ताजमहल का नजारा आकर्षक लगता है। इन सब ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण कर एक आंतरिक खुशी का आभास हो रहा था। हमने अपने हर क्षण को कैमरे में कैद कर यहाँ से भी रुखसती ली। आज की यात्रा में हमने मुगलिया सल्तनत के कई धरोहरों की अमिट यादों को समेटा जो हमारी यात्रा का एक ख़ास लम्हा था। जब गाड़ी से आगे वृंदावन की ओर लौट रहे थे तो हमने यहाँ से आगरे का मशहूर ‘पंक्षी पेठा’ खरीदा, यहाँ पंक्षी.. पेठे का एक मशहूर ब्रांड है। इसके बिना हमारी यात्रा अधूरी थी।
 
वास्तव में यात्रा से व्यक्ति बहुत कुछ पाता है जो उसके ऐन्द्रिय एवं बौद्धिक ललक को सन्तुष्ट करती है। यह समय के सदुपयोग का सर्वोतम तरीका है। नयी जगह पर व्यक्ति कुछ जानने के लिये उत्सुक एवं ज्ञान अर्जित करने के लिये व्यस्त हो जाता है। रोमांचित एवं आश्चर्य चकित करने वाले स्थल उसके उत्साह को जागृत रखते है।
 
उत्तर प्रदेश विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं का मिश्रण है। समृद्ध संस्कृति का अनुभव करने के लिए इस राज्य की यात्रा से इंसान को कई अनुभव प्राप्त होते हैं। उत्तर प्रदेश विविधता, संस्कृति, रीति-रिवाजों और परंपराओं का केंद्र है। इसकी यात्रा में शामिल होकर अंतहीन गतिविधियों का अन्वेषण जरूर करें।
 
हमारी यात्रा का अब चौथा दिन बीत चला था। और आगे की हमारी यात्रा प्रतीक्षा में थी। इस वजह से हमने यहां से अब रुखसती का फैसला लिया। जिंदगानी रही तो गालिब का सैर वाला कथन जरूर मुक्कमल होगा, पुनः वापसी होगी।
अब किसी ठंडी जगह पर चलने की योजना थी, आगे हमारी यात्रा का अगला पड़ाव और उसपर विस्तृत चर्चा अपनी आखरी किश्त में करूँगी।

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