श्रमिकों का पलायन, असली जिम्मेवार कौन?

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सरकार की किसान, मजदूर और मध्यम वर्ग के हित में ली गई राहतपूर्ण घोषणाएं कितनी ईमानदारी पूर्वक उन्हें हासिल होतीं हैं, देखने वाली बातें हैं। बिचौलिये कितने और कैसे कोरोना राहत घोटाले करते हैं, यह शीघ्र पर्दाफाश होंगे।

राय तुहिन कुमार/पटना

Writer: राय तुहिन कुमार

आज केरल से लेकर कश्मीर तक मजदूरों का अपने गृह राज्यों को जाने के लिए जो पलायन हो रहे हैं, उसके लिए वस्तुतः जिम्मेदार कौन हैं? पहले तो वहाँ की राज्य सरकारें और प्रशासन जिम्मेदार है, जो लॉकडाउन में श्रमिकों को वहाँ रोक पाने में असफल रही या कोई और एजेंसी?

दूसरी ओर जिन मजदूरों ने आजीवन अपनी जवानी को झोंककर उस राज्य के कल-कारखानों और विकास के तमाम कार्यक्रमों में अपने को समर्पित कर दिया और भविष्य में भी उनके बगैर वहां कोई काम नहीं हो सकता। विशेष आपातकाल में कारखानों के प्रबंधकों और राज्य सरकारो ने न तो उन लोगों को दोनों वक्त के भोजन की व्यवस्था की और न वेतन ही दिया। इसलिए भूखमरी और तालाबंदी के कारण मजदूरों को अपने गांव लौटने पर विवश होना पड़ा।

देश में लॉकडाउन लगने के बाद शुरुआत में उनके घर लौटने की कोई व्यवस्था नहीं की गई और आज भी उनकी तादाद के हिसाब से कोरोंटाइन और गांवों में उनके खाने-पीने का पूर्ण इंतजाम नहीं है। जहां अभिजात्य वर्ग आधा किलोमीटर भी पैदल नहीं चल पाते, वहाँ हजारों किलोमीटर, छोटे बच्चों,और सामानों के साथ उनका चलना कोई जीवटपूर्ण व हौसलेवालों की ही वश की बात है।वास्तव में मजदूरों को पैदल, साईकिल ठेला और ट्रक से जाते देखकर कलेजा मुँह को आ जाता है। ऐसे में भूखे पेट और बारंबार सड़क दुर्घटनाओं में उनकी अकाल मौतें छाती को और भी छलनी कर देता है।

अधिकतर राजनीतिक दल श्रमिकों को अपना वोट बैंक समझते हैं, इसलिए उनके हितैषी होने का ढोंग करते हैं, किंतु कोई भी मंत्री, विधायक या सांसद उन्हें अब तक देखने तक नहीं गया। विपक्षियों ने उन्हें अपने राज्य में बुलाने के लिए काफी दवाब बनाया था जबकि इसी जानलेवा कोरोना काल में डॉक्टर-नर्स, पुलिसकर्मी, सफाई कर्मचारी और पत्रकार जान की परवाह किए बिना मैदाने कोरोना जंग में सेवारत हैं।

सरकार की किसान, मजदूर और मध्यम वर्ग के हित में ली गई राहतपूर्ण घोषणाएं कितनी ईमानदारी पूर्वक उन्हें हासिल होतीं हैं, देखने वाली बातें हैं। बिचौलिये कितने और कैसे कोरोना राहत घोटाले करते हैं, यह शीघ्र पर्दाफाश होंगे। राज्य सरकारें अपने लाखों प्रवासी मजदूरों की आजीविका या रोजगार देने के लिए कौन सी कारगर योजना बनाती है,यह भी देखना होगा? बदलाव के बावजूद नीतीश सरकार के राज्य बिहार में कितने बड़े कारखाने स्थापित हो पाते हैं?

कुल मिलाकर यह चुनावी वर्ष है,अतः सिर्फ वोट हासिल करने की लालच से फालतू बयान न देकर सत्तारूढ़ और विपक्ष के नेताओं को श्रमिकों के रोजगार और काम मुहैया कराने में विवेक लगानी चाहिए।साथ ही उन्हें अपने क्षेत्रों में भी जाना चाहिए।

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