सपा सरकार में सूबे के थाने यादव थानेदारों से भरी थी तो अब योगी के राज में सूबे के थाने ब्राह्मण और क्षत्रिय थानेदारों से लैश हो रहे हैं। अखिलेश सरकार की ऐसे करतूतों की चाहे जितनी भी निंदा की जाए कम ही होगी। राजनीति भले जातिवाद तक होती रहे लेकिन सत्ता और सरकार चलाने में जातिवाद अगर सिर चढ़कर बोलने लगे तो फिर ऐसे लोकतंत्र से न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती।
अखिलेश अखिल, वरिष्ठ पत्रकार/नई दिल्ली
क्या यूपी की योगी सरकार जातिवादी रंग में रंग गयी है? क्या सबका साथ सबका विकास की राजनीति अब योगी सरकार को रास नहीं आ रही है ? जो तथ्य सामने आ रहे हैं उससे तो यही लगता है कि योगी सरकार पिछली अखिलेश सरकार की जातिवादी राजनीति से कही पीछे नहीं है।
सपा सरकार में सूबे के थाने यादव थानेदारों से भरी थी तो अब योगी के राज में सूबे के थाने ब्राह्मण और क्षत्रिय थानेदारों से लैश हो रहे हैं। अखिलेश सरकार की ऐसे करतूतों की चाहे जितनी भी निंदा की जाए कम ही होगी। राजनीति भले जातिवाद तक होती रहे लेकिन सत्ता और सरकार चलाने में जातिवाद अगर सिर चढ़कर बोलने लगे तो फिर ऐसे लोकतंत्र से न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती। सपा सरकार पर जातिवादी राजनीति करने का सबसे ज्यादा आरोप बीजेपी ने ही लगाया था। लेकिन अब जो योगी सरकार में हो रहा है उसे कौन क्या कहे ?
खबर है कि योगी सरकार सभी महत्वपूर्ण थानों में ज्यादा से ज्यादा सवर्णों की नियुक्ति कर रही है। प्रधानमन्त्री की संसदीय सीट वाराणसी के 24 थानों में से 23 में सवर्ण थानेदार तैनात हुए हैं वहीँ एक थानेदार ओबीसी वर्ग का है। कमोवेश यही हाल इलाहाबाद का है जहाँ के 44 थानों में से एक थाने में यादव और एक थाने की कमान मुस्लिम को दे दी गई है। पूरे इलाहाबाद में एक भी थानेदार अनुसूचित जाति का नहीं है। यही हाल राजधानी लखनऊ के साथ साथ सोनभद्र, भदोही, इलाहाबाद, कानपुर, मिर्जापुर, गोरखपुर, झांसी, मुरादाबाद, मेरठ, रामपुर, वाराणसी, बरेली, आजमगढ़ जैसे जिलों के थानों का है। जहाँ ज्यादातर थानों की कमान ब्राह्मणों या ठाकुरों के हाथ में दे दी गई है।
प्रदेश के थानों में जातिवाद का बोलबाला किस कदर बढा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जालौन जिले में 19 में से 11 थानों की कमान केवल ब्राह्मण जाति के थानेदारों को दे दी गई हैं। नियम कायदों को देखे तो 7 जून 2002 को पारित किये गए एक सरकारी आदेश के तहत यूपी के थानों में 50 फीसदी थानाध्यक्षों के पोस्ट सामान्य श्रेणी को,21 फीसदी अनुसूचित जाति और 27 फीसदी पद अन्य पिछड़े वर्ग के अलावा 2 फीसदी पद जनजाति श्रेणी के अधिकारियों को देने का आदेश हुआ था। इसके तहत यूपी के कुल 1,447 थानों में 724 सामान्य, 303 अनुसूचित जाति, 30 जनजाति और 420 थानाध्यक्षों के पद OBC के लिए आरक्षित किये जाने थे। लेकिन इस नियम पर कोई अमल करता नहीं दिखता। पिछली सरकार ने भी इस नियम की अनदेखी की तो योगी सरकार भी ऐसा ही करती दिख रही है।
उल्लेखनीय है कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपनी पहली कैबिनेट की बैठक के बाद अपनी प्राथमिकताओं में पुलिस महकमे में जाति विशेष के वर्चस्व को ख़त्म करके कानून व्यवस्था की स्थिति को ठीक करने की बात कही थी। लेकिन कहने भर से होता क्या है ? सभी सरकारों ने देश से गरीबी और बेरोजगारी ख़त्म करने की बाते है थी लेकिन हुआ क्या ? राजनीति अपने लीक पर ही चलती है। सच यही है कि चुनावी वादों से देश नहीं चलता। सरकार जो करती दिख रही होती है असली सच वही है।