राजधानी दिल्ली की गौरव इंडस्ट्रीज अंतरराष्ट्रीय क्वालिटी के कैस्टोर और ट्रॉली पहियों के उत्पादन और वैश्विक मार्केटिंग में सन 1980 से ही लगी हुई है। डायरेक्टर अंकुर मंगला की इस कंपनी को castors and trolley wheels के उत्पादन और मार्केटिंग में विशेषज्ञता हासिल है। अंकुर की कंपनी का दावा है कि वह कैस्टोर पहियों के डिजाइन, टेस्टिंग और क्वालिटी कंट्रोल के हर पहलू का बारीकी से ख्याल रखती है। “Envoy”, “Techmo”, “Glide” और “Hindustan” मशहूर ब्रांड के लिए गौरव इंडस्ट्रीज वर्षों से कैस्टोर पहियों का उत्पादन कर रही है। कैस्टोर पहियों की डिमांड करने वाली ये कंपनियां Furniture, Institutional, Hospital and Industrial Applications के प्रोडक्शन में लगी हुई हैं। आज की तारीख में castors and wheels के उत्पादन में गौरव इंडस्ट्रीज भारत में नंबर वन है और इनका सालाना टर्न ओवर 6 करोड़ रुपये है। लौकडॉउन के 4थे चरण से गौरव इंडस्ट्रीज ने भी 25-30 फीसदी लेबर के साथ कैस्टोर पहियों का उत्पादन और मार्केटिंग शुरू कर दी है।
Gaurav Industries कंपनी के डायरेक्टर अंकुर मंगला से खबर-इंडिया के संपादक राय तपन भारती की बातचीत (1ली किश्त)
khabar-india.com: अंकुर मंगलाजी, khabar-india.com वेबसाइट पर उद्यमियों के इंटरव्यू की कड़ी में आपका स्वागत है। मेरा पहला सवाल है कि कोरोना संकट की वजह से लॉकडाउन का जो अचानक ऐलान हुआ उसका अंदाजा शायद नहीं होगा। ये बताइये, ये 2 महीने आपने कैसे बिताए?
Ankur Mangla: हर चीज को देखने के दो नजरिये होते हैं- अच्छे और बुरे दोनों। एक-दो हफ्ते पहले से ही चीन, इटली जैसे देशों की तरह लॉकडाउन होने का कुछ-कुछ अंदाजा हमे था। विदेशों में जिस तरह से कोरोना वायरस फैल रहा था इससे हमारे देश में भी लॉकडाउन आएगा इसका अंदेशा हो गया था। पर ये इतना अचानक होगा ये नहीं पता था। हाँ, हम परेशान तो हुए पर हमने जो वक़्त बच्चों और परिवार के साथ गुजारा ऐसा समय हमे पहले कभी नही मिला था। लॉकडाउन के ये दो महीने हमने घर में ही बिताए।
khabar-india.com: मतलब, अपने परिवार के साथ लॉकडाउन में आपके बिताए पल अद्भुत थे?
Ankur Mangla: ऐसा आप कह सकते हैं। पिछले 17 साल से हम बिजनेस की लाइन में हैं पर परिवार के संग ऐसी छुट्टियां कभी नही मनाई थी।
khabar-india.com: पर अब 2 महीने के बाद आप बोर हो रहे होंगे। अब बहुत सारे लोगों को अपने ईम्पलाई और फैक्ट्री की चिंता हो रही है। क्या आप बिजनेस को रिवाइव के बारे में कदम उठा रहे हैं?
Ankur Mangla: अब भी हमारी एक प्रॉब्लम है कि देश में आधी मार्केट खुली पाई है और आधी मार्केट अब भी बंद हैं। कैस्टोर पहियों के उत्पादन के लिए कच्चा माल ऑल ओवर इंडिया से मंगाना पड़ता है, इसी तरह कैस्टोर पहियों की सप्लाई भी पूरे देश में है। हम सबकी समस्या है कि कुछ शहर तो खुल गये हैं, इंडस्ट्रीज भी खुल गई हैं। लेकिन कुछ जगहों पर अब भी लॉकडाउन है। कई जगह अब भी रेड जॉन में हैं कंटेन्मेंट एरिया में हैं। उससे बिजनेस में प्रॉब्लम आ रही है। अगर मार्किट खुली है तो हमारे क्लाइंट के ऑफिस नही खुले हैं। ऐसे में नए पेमेंट की दिक्कत आ रही है। हमारे पुराने पेमेंट भी अटके हुए हैं। लॉकडाउन के हालत में हम उनसे बकाया मांग भी नहीं पा रहे।
khabar-india.com: बकाया न मांगने की वजह? ऐसी दुविधा क्यों?
Ankur Mangla: जिनकी दुकानें बंद हैं, जिनकी फैक्ट्री बन्द हैं। उनसे बकाया मांगने में हमे अच्छा नहीं लग रहा है। लेकिन जब हमारी फैक्टरी खुल गई है तो रॉ मैटेरियल के हमारे सप्लायर अब हमसे पेमेंट मांग रहे हैं। इस तरह से देखिए तो खर्च चारों तरफ हैं क्योंकि सैलरी, रेंट, बैंक ईएमआई आदि सब देने हैं।अब तो सभी सप्लायर को रेगुलर पेमेंट भी करनी पड़ रही है। पर आगे यह समस्या आने वाली है कि जिनकी दुकानें खुल गई हैं वो पेमेंट के लिए नकद का इंतजाम नही कर पा रहे हैं। हर एक के पास अपने चैलेंज हैं। मार्केट में आज सबसे बड़ी समस्या लिक्विडिटी और पेमेंट की है।
khabar-india.com: यह सच है कि लिक्विडिटी क्रंच अभी जबरदस्त है। इस लिक्विडिटी क्रंच में सरकार उद्यमियों की मदद कैसे कर सकती है?
Ankur Mangla: सरकार को चाहिए कि आयकर देने वाले बिजनेसमैन और इंडस्ट्रियलिस्टस की लिक्विडिटी दूर करने के लिए उनके बैंक खाते में आसानी से कर्ज के पैसे दे दे और यह मेहनती वर्ग बैंक का कर्ज बैंक को लौटा देगा। मुझे दुख है कि हम बिजनेस वालों को सरकार टैक्स में कोई रिबेट नहीं देती है। आज अगर FD करवाना जाइए तो उसका इंटरेस्ट मिलता है महज 6-7%। अभी प्रधानमंत्री मोदीजी ने एक योजना निकाली है जिसके बारे में उन्होंने कहा है कि बिजनेस और इंडस्ट्रीज के लिए करोड़ रुपये दे रहा हूँ।
khabar-india.com: पर क्या वाकई उद्यमियों को आसानी से लोन मिल रहा है?
Ankur Mangla: बैंक को चाहिए कि उद्यमियों को बिन मांगे ऑटोमेटिक लोन दे। ऑटोमेटिक लोन का मतलब क्या हुआ? बैंक में जितने भी करंट खाते हैं बैंक उस पर इंटरेस्ट नहीं देता। तो उन खातों में ऑटोमेटिक लोन देना चाहिए और उस खाते को ओवर ड्राफ्ट यानी O.D. की सुविधा देना चाहिए। मान लीजिए, मेरी कंपनी के करंट खाते में आज 5 लाख रुपये पड़े हैं। पर मैंने अपनी कंपनी को पटरी पर लाने के लिए आज 10 लाख रुपये का चेक काट दिया तो वो चेक बाउंस नहीं होना चाहिए बल्कि बैंक से अपने आप क्लियर हो जाना चाहिए। इससे देश में जीडीपी की ग्रोथ में फिर से तेजी आएगी। सरकार को यह समझना होगा कि ऐसा कदम उठाने से GST कलेक्सन भी बढ़ेगा और रोजगार की रफ्तार बढ़ेगी जिससे लोगों की खरीद क्षमता में इजाफ़ा होगा। ऐसे ओवर ड्राफ्ट के लिए बैंक बैंकिंग ट्रांजेक्शन और कंपनी के टर्न ओवर की जांच कर सकता है।
khabar-india.com: ये तो हो गई बैंक की बात।अब सरकार के सहयोग की बात। अब आप बताइए कि कैस्टोर पहियों की डिमांड का अब क्या सिचुएशन है? अगर डिमांड नही है तो आप कैसे कस्टमर के साथ बिजनेस बढ़ाने का काम कर रहे हैं?
Ankur Mangla: मैं आपको बताता हूँ कि कोरोना संकट से पहले अभी तक जितनी डिमांड थी उनमें से ज्यादातर इंडस्ट्रीज से ही आती थी। इंडस्ट्रीज के अंदर मैटेरियल हैंडलिंग में यूज होते थे। लेकिन जब कोरोना का संकट आया तो प्रॉब्लम यह आई कि कम्पनियों के पास लिक्विडिटी की कमी आ गई है। तो ऐसे हालात में वे लोग चाहेंगे कि जैसे गाड़ी का टायर घिस जाने पर पैसा रहने पर लोग टायर बदलवा लेते हैं। लेकिन जब नगदी की कमी होती है तब आदमी कहता है कोई बात नही, जब भी पंक्चर होगा उसे किसी तरह कुछ दिन खींच लेते हैं। ऐसा, लग रहा है कि लोग खर्च को टालना चाहेंगे जो इंडस्ट्रीज के लिए अच्छा नहीं होगा।
khabar-india.com: लेकिन बेसिक बात बताइये आपके कैस्टोर पहियों की जो डिमांड थी वो अभी कितने परसेंटेज में है ?
Ankur Mangla: इंडस्ट्रीज सेक्टर का स्ट्रक्चर खड़े होने में अभी कुछ महीने लगेंगे क्योंकि हमारे क्लाइंट के पास लिक्विडिटी न होने से रॉ मटेरियल हम लोग खरीद नहीं पाएंगे। हमारे प्रोडक्शन भी कम होंगे। दूसरी ओर फैक्ट्री में हमारे लेबर 25% ही अभी बचे हैं शेष 75% गांव निकल गए हैं।
khabar-india.com: एक तो आपकी लेबर कैपेसिटी एक चौथाई घाट गई है और उसके बाद डिमांड की क्या हालत है?
Ankur Mangla: डिमांड तो है। जैसा कि आपको शुरुआत में ही बताया, मार्केट 50% से 60% ही खुला है। 2 महीने से डिमांड एकदम नहीं थी। कुछ जगहों पर बाज़ार चोरी छिपे खुले, दिल्ली NCR बाद में देरी से खुला। उसकी वजह से डिमांड का शार्ट फॉल था। जब तक लेबर की उपस्थिति फूल फेज में नही आएगी तब तक अर्थ-व्यवस्था पटरी पर नहीं आ पाएगी। अगर लॉकडाउन 1 जून से खत्म भी होता है तब भी 5-6 महीने लगेंगे अर्थ-व्यवस्था की गाड़ी को पटरी पर आने में। जब तक पूरी तरह प्रोडक्शन चालू नही होगी डिमांड भी नहीं आएगी। सरकार का सहयोग रहा तो सब जल्दी सम्भव होगा।