पत्रकार  रामजी मिश्र मनोहर को अपनी जन्मभूमि और समाज से प्रेम था

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आज जिनका जन्मदिन है

कल की पत्रकारिता चाटुकारिता की नहीं थी। तब एक साहित्यकार और पत्रकार जो अनुभव करता था,वह लिखता था। मनोहर जी उस काल के सम्मानित पत्रकार थे, जब निष्ठा और ईमानदारी का मूल्य सर्वाधिक था। आज की पत्रकारिता सुविधा की है। राग-द्वेष से, निंदा और स्तुति-गान की है।

राय तपन भारती 

रामजी मिश्र मनोहर जी की पत्रकारिता एवं बेदाग जीवन पत्रकारों के लिए अनुकरणीय है। कालजयी पत्रकार होने के लिए संवेदनशील और समाज की समस्याओं की समझ और उसे व्यक्त करने के लिए भाषा का होना आवश्यक है, जो कि आज के समय में भी प्रासंगिक है। रामजी मिश्र मनोहर को अपनी जन्मभूमि और अपने समाज से प्रेम था, यह उनके जीवन और पत्रकारिता में स्पष्ट दिखता है।
वे मेरे पिता स्व. राय प्राभाकर प्रसाद, जो लेखक थे, के परम मित्र थे। पिताजी के जरिए रामजी मिश्र के बारे में बहुत कुछ जाना। उन दोनों में दोस्ती तब हुई जब राय प्रभाकर जी पटना सिटी में एसडीएम थे।
 उनके निर्देशन में कई बड़े पत्रकार बने। पत्रकारिता उनके लिए नौकरी नहीं थी बल्कि, एक मिशन थी। रामजी मिश्र मनोहर ने पत्रकार के रूप में जो लिखा वह आज भी प्रासंगिक है उन्होंने कहा कि पाटलिपुत्र के बिछड़े हुए अतीत को उन्होंने जिस ढंग से सहेजा है वह अद्भुत एवं उपयोगी है।
मिश्र जी में निर्मल पत्रकारिता का एक बड़ा हीं उच्च संस्कार था। उनके पिता डा विश्वेस्वर दत्त मिश्र, पितामह विश्वरूप मिश्र और प्रपितामह रामलाल मिश्र भी अपने समय के मनीषी पत्रकार थे।

क्या कहते हैं ज्ञानवर्धन मिश्र:

आज रामनवमी है। आज ही के दिन प्रातः:स्मरणीय पूज्य पितृश्री पंडित रामजी मिश्र ‘ मनोहर ‘ का भी जन्म हुआ था तभी तो उनका नाम भी ‘ राम ‘ रखा गया। वट वृक्ष की तरह विस्तृत आपका पारिवारिक जाल, देश के विभिन्न भागों में पत्रकारिता के विविध आयामों को अंजाम देते आपके पुत्र, पौत्र, दौहित्र और शुभेच्छुओं का विपुल भंडार आज आपके 93 वें अवतरण दिवस पर आपको श्रद्धा और स्नेहपूर्वक स्मरण कर रहा है। आज आप होते तो ऐसा होता, आप होते तो वैसा होता, न जाने क्या-क्या होता— जितने मुंह उतनी बात। आपको पूरे परिवार और सभी शुभेच्छुओं की ओर से शत-शत नमन।
 

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